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कविता

ऐसा नहीं होता तो

हरे प्रकाश उपाध्याय


अच्छा है कि हैं देश में निर्दोष
कि कानून उन्हें सजा दे रहा है
और रक्षा कर पा रहा है अपनी मर्यादा की
अच्छा है कि हैं अबले
कि सधाते हैं सबले अपनी जोम
अच्छा है कि बचे हैं गरीब
कि अमीर ऐंठते हैं अपनी अमीरी
अच्छा है कि सीधे लोग हैं अड़ोस-पड़ोस
कि गुंडों की चलती है गुंडई
अच्छा है कि जनता है निरीह
कि चल पा रही है सरकार निरंकुश
अच्छा है कि रहे हैं लोग मूर्ख के मूर्ख
कि चालाक कर रहे हैं चालाकियाँ
अच्छा है कि पूजने वाले हैं
तो बची है प्रभु की प्रभुता
नहीं तो क्या होता
ऐसा नहीं होता तो
कैसा होता मेरे दोस्त!
यह दुनिया कैसी दिखती तब?

 


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